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. (३५ ) अहिंसा का अमोघ शस्त्र हाथ किया है और भारत की उन्नति की कुजी हाथ कि है उसी से ही विजय है ऐसी भारत की आज की परिस्थिति देख कर. हम कह सकते हैं। हिंसा में हमेशां भय रहता है। भय से मनुष्य कायर हो जाता है और कायर हमेशां पराजय को पाता है । जब अहिंसा में हमेशा निर्भीकता रहती है । निर्भीकता हिम्मत को पेदा करती है और हिम्मतवान हमेशां जय पाता है। हिंसा " पाप के पैसे कभी प्रभुता नहीं लातें” उस की तरह कभी सुख को देनेवाली नहीं होती । उस से पापपुञ्ज का सञ्चय होता है जिस को विना सहन किये चलता नहीं। इसलिए सत्यशीलों को सत्यपालन के लिए अहिंसा से कभी विचलित होना नहीं चाहिए । सत्यशील पर आफतें आती है, संकट की आँधी उस को परेशान करती है, जान का खतरा भी हो जाता है मगर वह कभी क्रोध नहीं करता, गुन्हेगार की ओर प्रेम की निगाह से देखता है और उन की अज्ञानता के लिए वह अफसोस करता है। श्री वीरप्रभु को जब चंडकौशिक काटता है और विषवर्षा करने पर महाप्रभु को अविचलित देख कर फिर काटता है तब महाप्रभु करुणामयी आर्द्र वाणी से कहते हैं-" चंडकौशिक ! शान्त हो, शान्त हो ।” वैरी के सामने ऐसी क्षमा को धारण करनेवाले ही विश्ववंद्य हो सकते हैं और वे ही सच्चे क्षमाशील और अहिंसक हैं। एक समय गजसुकुमाल मुनि अपने श्वशुर के ग्राम में भ्रमण करते हुए पधारे । अचानक उन दोनों की मार्ग में भेट हुई। मगर श्वशुर के दिल में मुनिवर्य
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