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________________ मगर उस को श्रीराम जैसी महा व्यक्ति के आगे हारना पंडा और समरांगण में अपना अस्तित्व मिटाना पड़ा। इसलिए आसुरीवल चाहे कितना भी क्यों न हो मगर सात्विकवल के आगे वह ठहर नहीं सकता । मेघाच्छिन्न सूर्य जैसे मेघखण्डों से मुक्त होता है वैसे वैसे उस का तेज वृद्धि को पाता है उसी तरह आत्मा का अहिंसावल जितना वढता है उतना उस का सामर्थ्य वृद्धि को पाता है। अहिंसावादी हमेशां अपना आत्मा का सामर्थ्य अहिंसा के बल से बढाता जाता है तव हिंसावादी अधर्माचरण से पापकर्म को बढाता है और अज्ञानरूपी अंधकार से अशुभ कर्मों को पैदा कर के निस्तेज होता है। जो अहिंसक हैं, सत्यव्रत के पालक हैं वे दुःख और विषाद के बादल उमड आने पर-कष्ट की वर्षा होने पर भी अपने व्रत से तिल भर भी पीछे नहीं हटते थे, वे चूपचाप दुःखों को सहते हैं और दूसरे के कल्याण की भावना करते रहते हैं। ___ अहिंसा के उच्च तत्व आत्मा की उन्नत स्थिति को प्राप्त करने के लिए-परमात्मदशा को पहुंचने के लिए हैं। अतः किसी स्वरूप से किसी विषय में उस को यथास्थित पालन करने में आये तो अहिंसा के प्रमाण में इच्छित लाभ को विना दिये नहीं रहते । गुड हमेशां मीठा होता है और जब कभी उस को चक्खो तब वह मीठापन देता है। इसी तरह अहिंसा का कैसा भी पालन हितावह ही होता है । माता भारती के वीरपुत्र महात्मा गांधीजीने जो देश की आझादी के लिए
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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