________________
. ( २६ ) प्रवृत्तियोंसे पर हैं और जहाँ आत्माके धर्मका ही साम्राज्य है वेही आत्मा समस्थिति को प्राप्त करते हैं।
समभावी हमेशां सरल स्वभावी होता और निरभिमान वृत्तिवाला होता है। जिस तरह वह शान्तता का प्रेरक है, उसी तरह वह समानता का भी द्योतक है।
आत्मवत् सर्वभूतेषु, यः पश्यति स पश्यति । इस दीव्यसूत्र का अच्छा परिचय करानेवाला कोई हो तो वह समभाव है । इस लिए मुमुक्षुओं को चाहिए कि वे सम-- भाव को प्रथम प्राप्त करें यही हमारे कहने का आशय है।
M
SHIY