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समभाव.
जैनदर्शन, मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग ( साधन ) समभाव मानता है। यह मार्ग सर्व दर्शनवाले को स्वीकार करने लायक है।
चौदहसो चुंवालीस ग्रंथरत्नों के कर्ता समर्थज्ञानी श्री हरिभद्रसूरिजी कहते हैं कि--
सेयं वरोय आसं घरोय बुद्धो अ अहव अन्नोवा । समभावमाविअप्पा लहेइ मुख्खं न संदेहो ।