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उन के वास्तविक सत्य की तुलना हो सक्ती है। अतः उस से किसी भी प्रकार के कलह को अवकाश नहीं रहता है । समस्तः जगतमें स्याद्वाद ही एक ऐसा सिद्धान्त है जो सुलेह साम्राज्य की स्थापना कर सक्ता है। इसी कारण उन का यथार्थतया ज्ञान संपादन करने की सब से प्रथम आवश्यक्ता है। श्रमण भगवान महावीर के समयमें एक तर्फ वेदान्त दर्शन एकान्त नित्य धर्म की उद्घोषणा कर रहा था, जब दूसरी ओर बौद्ध दर्शन अनित्य (क्षणिक) वाद की प्ररुपणा कर अपना विस्तार. बढा रहा था । परिणाम यह आया कि इस से परस्पर वैमनस्य की भावना उमड उठी और वह भावना तब ही शांत हुई कि जब भगवान महावीर के नित्यानित्यरुप स्याद्वाद धर्म का जल लिड का गया । खास लाभ तो यह हुआ कि न्यायप्रीय तत्वज्ञों को सत्य का भास हुआ और जहां २ धर्म के नाम पर झघडा या वैर-विरोध बढ रहा था वह शांत हो गया । इस तरह स्याद्वाद धर्म का वास्तविक-सत्य स्वरुप निम्न लिखित पांच अन्धों के उदाहरण से समझने योग्य है:___एक समय पांच अन्धे मनुष्य हाथी को देखने गये। परन्तु अन्धत्व के कारण आंख से देखना उनके लिये असंभव था परन्तु पांचोने मिलकर हाथी के शरीर का एक २ अंग पकड कर मनमें निश्चय कर लिया कि हमने हाथी को ठीक २ पहिचाना है। एक सज्जनने पूछा कि भाई ! तुमने हाथी को देखा है ?. तब जिस अन्ध मनुष्यने हाथी का पांव पकडा था वह झट से बोल उठा कि हां मैंने हाथी को बराबर स्पर्श कर