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________________ चस्तु सुवर्ण था वह तो ज्यों का त्यों कायम है। इस से यह बात स्पष्ट हुई कि प्रत्येक वस्तु में कथंचित नित्यत्वं और कथंचित अनित्यत्वरुप स्याद्वाद धर्म रहा हुआ है। ___ एकान्त नित्य उस को कहते हैं कि कोई भी वस्तु सदाकाल एक ही रुप में यानि पूर्ववत् कायम रहे। एकान्त अनित्य वो है कि टूटने-फूटने से जिस वस्तु का सर्वनाश हो जाय, उनका एक अंश भी दूसरी वस्तुमें न मिल जाय इस तरह उपर लिखे माफिक तमाम पदार्थोमें नित्यत्व, अंनि- . त्यत्व, प्रमेयत्व, वाच्यत्व आदि अनेक धर्म रहे हुए । उन धर्मों को सापेक्षष्टि से देखना उन्ही का नाम स्याद्वाद है। स्याद्वाद का जो सिद्धान्त है उनका वास्तविक स्वरुप विचारा जाय तो वह एक जबरदस्त और विश्वमान्य सिद्धान्त है एसा निःशंक और निर्विवाद कह सक्ते है। यह अनेकान्तबादमें सत्य और अहिंसा उभय का समावेश होता है। समस्त विश्व का यथार्थ स्वरुप अवलोकन करने के लिये स्याद्वाद यह दिव्यचक्षु समान है । उनको यथार्थ रुपमें नहीं समझने से ही अनेक मत मतान्तर और क्लेशों की उत्पत्ति हुई है एवं वर्तमानमें भी हो रहा है। परन्तु उनका यथार्थ स्वरुप समझने से अज्ञानता और मताभिमान का नाश होता है। देहशुद्धि के लिये जितनी स्नान की आवश्यक्ता है उस से भी अधिक जरुरत है विचारशुद्धि के लिये स्याद्वाद की। . कोई भी वस्तु उन के विविध दृष्टिविन्दु से देखी जाय तो
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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