SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के देखा है कि हाथी ठीक २ स्तंभ के बराबर होता है। तब दुसरा अंध जिसने कान पकडा था वह बोल उठा कि नहीं नहीं, हाथी तो सूप के समान होता है । अब जिसने दांत पकडा था वह कैसे चूप बैठ सके ? वह दोनों की बातों को काट कर. बोला कि तुम किसी को मालुम नहीं है, मैंने बराबर चारों और हाथ फिरा कर देखा है कि हाथी बराबर मुसलसांवला के समान ही होता है। यह बात सुन चौथा कि जिसने सुंढ पकडी थी उनका मुंह एकदम बिगड गया, वह बोलो तुम तीनों झूठे हो-व्यर्थ विवाद करते हो। मैंने अपने हाथों से . खूब पंपाल कर देखा है कि हाथी तो ठीक २ केल के स्तंभ जैसा होता है। ये चारों का विवाद सुन पांचवा कि जिसने 'पूंछ पकडा था उन का मिजाज एकदम गरम हो गया, वह बोला तुम चारों बडे बेवकूफ हो, जिस बात को जानते नही उन की व्यर्थ चर्चा कर समय व्यतीत कर रहे हो ? सीधी 'बात तो यह है कि हाथी और चंवर में विशेष कोई फर्क नहीं है। चंवर देखो और हाथी देखो लगभग समान ही बात है। इस तरह एक २ अंग को पकड कर संपूर्ण वस्तु का निश्चय करनेवाले पांच अन्धों का विवाद परस्पर में बढने लगा। तब किसी नेत्रवान् समझदार व्यक्तिने संपूर्ण हाथी को ओर उन के अंग-प्रत्यंग को देख कर उन अंधों को समझाया कि भाई ! हाथी न तो स्तंभ समान है न सूप जैसा है, न मुसल-सांवेला के समान है और न केल के स्तंभ वराबर है, और न चंवर के समान भी है। आप लोग व्यर्थ क्यों झगडते हो ? मैंने अपनी
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy