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( ७ ) धर्म प्राचीनतम गिना जाता है । और उन का अर्थ " उत्कृष्ट ज्ञान " ऐसा होता है। यहां विचार करना आवश्यक है कि जगतमें उत्कृष्ट ज्ञान किस से प्राप्त होता है ? मनुष्य जव माया का नाश करता है-अविद्या को दूर करता है तब ही उत्कृष्ट ज्ञान यानि कैवल्यज्ञान प्राप्त होता है। यह सीधी-सादी बात सब कोई समज सक्ते है। इस से इतना तो सुस्पष्ट है कि जैनधर्म कैवल्यज्ञान का कारण है तो वेदान्तधर्म उनका कार्य है। कारण कि-" कारणं विना कार्य नोत्पद्यन्ते" मतलब कि कारण विना कार्य की उत्पत्ति हो नहीं सक्ती और कार्य-कारण में कारण की मुख्यता रहती है। धर्म शब्द भी कारणवाचक है। उदाहरणार्थ- जीवननिर्वाहार्थ भोजन करना यह धर्म है ” परन्तु भोजनार्थ जीना यह धर्म नहीं है क्यों कि भोजन करना वह कार्य है। इस तरह धर्म शब्द को भी कारणवाचक शब्द के साथ लगा सक्ते हैं। इस से यह स्पष्ट है कि-जैनधर्म विश्वमें मुख्य धर्म है। जिनवरमें समस्त दर्शनों का समावेश:*
* " षड्दर्शन जिन अंग भणीजे " इस वाक्यपर से भद्रिक आत्माओं को फसाने में दुरुपयोग न हो, अतः उन का वास्तविक रहस्य : यहां
प्रकाशित किया जाता है। वह यह कि-शरीर का अमुक भाग-हाथ या --अङ्गुली आदि अङ्ग जब तक शरीर के साथ अपनी वास्तविक फर्ज
नजाता है-अंगरुप है; परन्तु जब वह सापेक्ष मिट कर दूरपेक्ष अपेक्षामें जाता है अर्थात् वह अङ्ग सड कर ऑपरेशन के योग्य बनता है तब उस सडा हुआ भाग को काट कर दूर किया जाता है। उस समय