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________________ ( ६ ) ___ योगवाशिष्ठ नामक अन्य दर्शनीय ग्रंथ के आधार से भी जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है। वेद के उपर नियुक्ति रचनेवाले यास्काचार्य थे। उन्होंने कई जगह शाकटायन व्याकरण के प्रयोग उध्धृत किये है। यह शाकटायन आचार्य जैनधर्मी थे और उनके प्रयोगों से मालुम पड़ता है कि वे यास्काचार्य के पहिले हुए हैं। ओर जैनधर्म भी उनके पूर्व समय में मोजूद था। वेदादि ग्रंथो में भी ऋषभ तथा अरिष्टनेमि क्रमश : प्रथम और बाइसवें तीर्थंकर के नाम दृष्टिगोचर होते हैं उस से भी यह बात स्पष्ट है कि वेदों के पूर्व जैनधर्म का अस्तित्त्व था। शब्द के अनेक अर्थ होते है परन्तु इस से ऋषभ और अरिष्टनेमि शब्द का वास्तविक रुढार्थ को छोड कर अन्य अर्थ करे तो भी उनका जो वास्तविक रुढ अर्थ है वह कदापि गुप्त नहीं रह सकता। लॉर्ड कनिंगहाम के समयमें मथुरा का टीला ( टेकरी ) खोदने से जैनों का प्राचीन मंदिर निकला जिन के उपर के लेख से जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है। युरोपीयन पंडित मेक्षमूलर कहते हैं कि वेद धर्म के सूत्रों का रचनाकाल करीब तीन हजार वर्ष का कहा जा सक्ता है। उपरोक्त हकीकतों से यह निश्चय होता है कि जैनधर्म प्राचीन से प्राचीन धर्म है। जैसी उनके शब्द पर से सनातन सत्यता सिद्ध होती है वैसी ऐतिहासिक दृष्टिसे भी उनकी सनातन सत्यता पुरवार हो सक्ती है। जैनधर्म विश्वमें मुख्य धर्म है : . ईस आर्यावर्त्तमें अन्य धर्मों की अपेक्षा वेदान्त धर्म
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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