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( ५ ) है और दूसरी बात यह कि जो सनातन सत्य है उनका कोई स्थापक नहीं हो सक्ता अन्यथा वह सनातन सत्य कहलाने के योग्य नहीं। मोक्ष मार्ग न तो कभी बंध हुआ और न होनेवाला है, उसी तरह भव्य-शून्य कभी न हुआ और न होने संसार का है। यह दोनों बातें हमेशां शाश्वती मानी गई है, उसी तरह इस जगत में सत्य भाव और असत्य भाव, सत्य विचारश्रेणी और असत्य विचारश्रेणी यह भी शाश्वती ही है। जैनधर्म वह सत्य विचार श्रेणी का पोषक है । इसी कारण जैनधर्म वो है जो अनादिकाल से चला आ रहा है। यही कारण हैं कि प्रो० हर्मन जेकोवी जैसे महान् समर्थ विद्वानों को भी कहना पडा कि " जैन दर्शन एक प्राचीन से प्राचीन विचारश्रेणी है और वह स्वतंत्र दर्शन है । वास्तवमें यह कथन सत्य भी इस लिये है कि जैन धर्म की प्राचीनता ऐतिहासिक प्रमाणों से भी सिद्ध हो चूकी है । स्व. योगनिष्ठ, शास्त्र विशारद, जैनाचार्यश्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजने अपने तत्त्वज्ञान दीपिका नामक ग्रंथमें जैनधर्म विषयक एक विस्तृत उल्लेख किया है जिन का संक्षिप्त सार इस प्रकार है:--" श्री कल्पसूत्र के आधार से माना जाय तो जैन धर्म के प्रणेता चौविश तीर्थंकर भगवान है। उनमें श्री प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव को हुए कई सागरोपम वर्ष हो गूजरे है यानि जैन धर्म के प्ररूपक श्री ऋषभदेव भगवान को हुए असंख्य वर्ष व्यतित हो चुके हैं। इसी से यह बात निःशंक सिद्ध है कि सर्व धर्मों की अपेक्षा जैनधर्म प्राचीनतम धर्म है। .