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"जैनदर्शन वास्तव में प्राचीन विचारश्रेणी है। अन्यान्य दर्शनों से बीलकुल भिन्न और स्वतंत्र दर्शन है। इसी लिये जैनदर्शन उन के लिये तो खास आवश्यकीय है जो प्राचीन हिन्दुस्थान के तत्त्वज्ञान संवन्धी विचार और धार्मिकजीवन के अभ्यासी है।"
प्रो० हर्मन जेकोबीने जैनतत्वज्ञान संबन्धी जो लेख. लिखा है वह हमने 'बुद्धिप्रभा' मासिक के प्रथम वर्ष के प्रथम अंक में प्रगट किया है । उपरोक्त विचार उसी लेख से दर्शाया गया है। अतः वास्तव में देखा जाय तो जैनदर्शन एक स्वतंत्र दर्शन है, बौद्धधर्म की अथवा अन्य कोई भी धर्म की शाखा नहीं है। इतना ही नहीं परन्तु नविन-कल्पित मत भी नहीं है। (इस विषयमें भी प्रो० हर्मन जेकोबीने उस लेखमें खूब समर्थन किया है) परन्तु वह सनातन सत्य है जो कि अनादिकाल से चला आ रहा है। और मुमुक्षुओंको भी अतिशय हितावह है। जैनदर्शन की महत्ताः
जैनदर्शन की महत्ता के संबंधमें डॉ. ओ. परटोल्डने । * धर्म के तुलनात्मक शास्त्रोंमें जैनधर्म का स्थान और महत्त्व" इस विषय पर ता. २१-६-३१ के दिन अपने व्याख्यानमें कहा कि-यदि संक्षेपसे कहा जाय तो श्रेष्ठ धर्मतत्त्व और. ज्ञान पद्धति ये दोनों दृष्टि से जैनधर्म: एक तुलनात्मक शास्त्रों में अतिशय आगे बढ़ा हुआ धर्म है । द्रव्यों के ज्ञान संपादन