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________________ (१५०) होने से सर्वदा आदरणीय है । जब तक मन, वचन और काययोग की क्रियायें बंध नहीं हुई है तब तक वे शुभ और अशुभ मार्ग को अवश्य जावेगी तब फिर उन तीनों योगों को जिनपूजारूप शुभ मार्ग में श्रावक को परिणत करने के लिए कौन मनाई करेगा ? प्र० श्रावक को किस कारण से जिनपूजा अवश्य करनी चाहिए? १० श्रावक मलानारंभी-असत् आरम्भी है अर्थात् वह सावध व्यापार का आरम्भ करनेवाला है इस लिये उस को जिन पूजा अवश्य करनी चाहिए । प्र० कोई कहे कि द्रव्यस्तव से पुण्य होता है जिंस से स्वर्ग मिलता है किन्तु मोक्ष नहीं मिलता तो द्रव्यस्तव क्यों करना चाहिए ? उ० 'द्रव्यस्तव' अवश्य करना चाहिए । द्रव्यस्तव, भावस्तव का कारण होने से तथा आत्मिक धर्म को पैदा करनेवाला होने से उस का अवश्य आदर करना चाहिए । सराग संयम स्वर्ग का कारण है मगर उस को उपादेय क्यों समजा प्र० द्रव्यस्तव वह अप्रधान स्तव है तब उस को छोड कर भाव स्तव क्यों न करना चाहिये ? उ० द्रव्यस्तव-पूजादि से भावस्तव-चारित्र्य की प्राप्ति होती है। इस द्रव्यस्तव का द्रव्य शब्द अप्रधान अर्थ में नहीं किन्त कारण अर्थ में समजना चाहिए इस लिए द्रव्यस्तव भावस्तव का कारण होने से अवश्य आदरणीय है।
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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