________________
(१४८) प्र. पुण्य कब होता है और निर्जरा ( देश से कर्मों का क्षय )
कब हो सकती है ? उ. किसी भी सत्कार्य को फल की चाहना के सिवाय और
निष्काम बुद्धि से और शुद्ध आत्मपरिणति से किया हो तो कर्म का क्षय होता है और फल की चाहना से और परिणाम की भाशा से किया हो तो पुण्य होता है। और इस लिये ही 'जय चीयराय सूत्र में लिखा है कि-'वारिज जइ विनियाणबंधणं वीयराय तुह समये " हे प्रभु वीतराग देव ! तेरे सिद्धान्त में नियाणा का ( फल की इच्छा से निषेध किया है। और भी गीता में श्रीकृष्णने अर्जुन को कहा है कि-हे अर्जुन ! " कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन " हे अर्जुन ! प्रत्येक कार्य में कर्म करने का तेरा अधिकार है, फल की चाहना न करना। इसी से ज्ञात होता है कि प्रत्येक सत्कार्य आसक्ति रहित करने चाहिये जिस से शुभ विभाव परिणाम नहीं हो और उस से पुण्य न बंधते हुए कर्म की निर्जरा हो जाय। . .
संक्षेप में प्रत्येक सत्कार्य को फल की चाहना से रहित करने चाहिए जिस से अशुभ कर्मों का क्षय हो जाता है। फल की इच्छा से सत्कार्य करने से शुभ कर्मों का उदय होता है और इस से शुभ विभाव कर्म बंधते हैं अर्थात् पुण्य कर्म बंधता है जिस को फिर भोगना पडता है। पाप एक लोहशृंखला है जब पुण्य भी सुवर्ण की श्रृंखला