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(१४५) धारण करनेवाली श्राविका थी। और भी उसने जिनप्रतिमा के सामने शक्रस्तव-नमुत्थुणं भावपूर्वक कह कर उन के गुण गाये थे । अगर वह श्राविका न होती तो
ऐसा न करती। प्र० श्री कल्पसत्र में सिद्धार्थ नृपतिने याग-यज्ञ किये थे ऐसा
उल्लेख है, यहाँ याग शब्द का क्या अर्थ है ? २० याग शब्द का अर्थ पूजा होता है । अन्य मत के मानने
वालों में इस का अर्थ पशु आदि के होमने से पूजा करना होता है और इसी कारण से वे यज्ञ शब्द के अर्थ को अच्छी तरह से नहीं समजते । 'यज्ञ' शब्द का अर्थ पूजा' होता है क्यों कि यजी देवपूजा-संगति करण दानेषु " यज् " धातु देव की पूजा करनी, संगति करनी और दान देना इस अर्थ में आता है । "याग" शब्द " यज्" धातु से हुआ है इस लिए याग का अर्थ पूजा ऐसा होता है, और सिद्धार्थ राजा शुद्ध श्रावक थे और शुद्ध श्रावक
कभी पशु होमादि से यज्ञ नहीं करते। प्र. देव धार्मिक नहीं होते यह क्या सत्य है ? १० नहीं, यह असत्य है और ऐसा कहनेवाले दृढतर कर्म
वाँधते है। सूर्याभ सुरराजने अन्य देव-देवीयों के साथ अपने विमान में रहे हुए सिद्धायतन में जाकर भाव सहित
वीतराग-प्रभु की प्रतिमा की पूजा कियी थी। . १० .