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________________ (१४४) कर है । गृहस्थ-श्रावक को 'द्रव्यस्तव' और 'भावस्तव' केवल श्रावक को ही हितकर है। मुनियों के लिए वह हितकर नहीं है। प्र. 'ज्ञाताधर्मकथा ' में प्रभु श्री महावीरस्वामीने जिनपूजा के विषय में क्या कहा है ? उ० उस में श्री प्रभु महावीरने कहा है कि सूर्याभदेव की तरह द्रौपदीने भाव से जिनेन्द्र प्रतिमा की पूजा कि थी। प्र. क्या द्रौपदी श्राविका थी ? उ० हाँ, द्रौपदी शुद्ध श्राविका थी और इस के लिए दृष्टान्त है। किसी समय नारदजी उन के घर आये थे किन्तु नारदजी असंयती होने से धर्म के मर्म की ज्ञाता द्रौपदी खडे होने . के बजाय अपने स्थान पर बैठी रही थी। जो शुद्ध सम्यक्त्व धारण करनेवाले होते हैं वे जिनेश्वर देव को या उन के भाषित धर्म को या साधु मुनिराज को ही नमस्कार हैं, अन्य किसी को वे नमन नहीं करते । सुश्राविका सुलसा को छल करने के लिए देवने अनेक रुप किये, सिंहासन और त्रिगडा' बनाया किन्तु वह अपने सम्यक्त्व से पदभाव भी च्युत न हुई । तात्पर्य यह है कि वे जो कि शुद्ध सम्यक्त्व क पालक होते हैं वे कभी असंयत को नमस्कार नहीं करते औद द्रौपदीने भी ऐसा ही किया था इस से सिद्ध होता है कि नह शुद्ध श्रद्धा को
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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