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(१४१ ) में अपार आरंभ माननेवाला स्वयं भवजल में डूबता है
और दूसरे को भी डूबाता है । जिन क्रियायों में विपयारम्भ का त्याग होता है वे क्रिया यें सदा भवजल का अन्त करनेवाली होती है। संसार के निमित्तभूत, विषयादि का आरंभ पाप की वृद्धि करनेवाला है किन्तु शुभ आरंभ से अशुभ भाव की निवृत्ति होती है और पाप का क्षय
होता है। प्र. जिनेन्द्र प्रभु की पूजा से और कौन कौन से लाभ होते है ? उ० जिनेन्द्र प्रभु की पूजा से वीतराग देव के गुणों का ध्यान
होता है और वीतराग प्रभु के गुण के ध्यानरूपी शुभ भाव से विपयारंभ का भय नहीं रहता इस लिए जिनपूजा आदि कार्य शुभ प्रारम्भ स्वरूप हैं और उस में अशुभ भाव की निवृत्ति का वडा भारी गुण है।
(२) प्रतिमा पूजन से विनय होता है और विनय वह एक अन्तरंग तप है इस लिए प्रभु की प्रतिमा का विनय करने से शुभ भाव होता है और शुभ भाव से
प्राणी मोक्षगति प्राप्त कर सकता है। प्र० वे लोक जो कि ' पूजा में आरंभ होता है। ऐसा सोच
कर जिनेन्द्र की पूजा नहीं करते वे क्या वास्तविक
करते हैं ? उ० वे अवास्तविक करते हैं । जिनेन्द्र प्रभु की प्रतिमा पूजन