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सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं तब जल्दि ही सिद्ध नहीं हो जाता, निश्चित समय अवश्य होता है । देश के अन्य व्यवहारिक कार्य भी उन का जब काल परिपूर्ण होता है तब ही फलते हैं । इसी तरह यहाँ कीयी पूजादि का पुण्य स्वकाल - भवान्तर में ही फलदायी होता है । इस लिए फल देनेवाले पदार्थों के सम्बन्ध में सुज्ञ पुरुषों को आतुरता नहीं रखनी चाहिए ।
चिंतामणी आदि पदार्थसमूह ऐहिक तुच्छ फल को देनेवाले हैं इस से वे परभव में नहीं किन्तु इसी मनुष्य भव में जो प्रायः तुच्छ काल का होता है उस में फलते हैं, जब पूजादि से होनेवाला फल विशाल होता है जो अनन्त काल पर्यन्त भोग में आता रहता है । उस जीव का विशेष काल देवादि सम्बन्धी भवान्तरों में जाता है हस लिए पूजादि के पुण्य का फल प्रायः भवान्तर में उदय में आता है । अगर इसी भव में उस का फल हो तो मनुष्य जीवनकाल स्वल्प होने से तुच्छ काल पर्यन्त वह सुख उपभोग में आता है । और मनुष्य देह नाशवन्त होता है उस से महत्पुण्य का फल भोगते भोगते मृत्यु हो जाने से स्वल्प समय में वह सुखभंग हो जाता
१ यह कथन यथास्थित भाव सहित कोयी हुई द्रव्य पूजा के महत् फल को लक्ष्य में लेकर के है । सामान्य पूजा का सामान्य फल तो इसी भव में मिल सकता है ।