________________
( १३३ )
वापिस अपने तरफ उन को आते हुए पाता है, सूर्य को कुछ भी नहीं होता । और भी सार्वभौम चक्रवर्ती, निंदा करनेवाला खुद जनसमूह के समक्ष दुःखी होता है और प्रशंसा करनेवाला स्वयं सुखी होता है। सार्वभौम नृपति को निंदा से कुछ हानि नहीं होती और प्रशंसा से कुछ लाभ नहीं होता । वैसे ही प्रभु की निन्दा - स्तुति को उन को कुछ भी नहीं होता । और भी जैसे अपथ्य आहार ग्रहण करनेवाला दुःखभाजन होता है जब पथ्य आहार लेनेवाला सुखी होता है किन्तु आहार को हानि या लाभ कुछ भी नहीं होता । ऐसे ही सिद्धों की पूजा पूजक को लाभकारी होती है ।
1