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( १३२) मिथ्या करने के लिए कोई समर्थ नहीं हैं। जिन में जो लिपि सिद्ध होती है उन में उस लिपि से फल निधान कहा जाता है।
और भी जैसे बुद्धपुरुषोने आंकृत्ति रहित अक्षरों की आकृत्ति बना कर के उस की स्थापना अपने अपने सुगुप्त श्राशय को समजाने के लिए भिन्नभिन्न कि है, और भी जैसे रागादि को जाननेवालोंने राग भी शब्दपरू होने से आकार रहित होते हुए भी उन सब की साकार स्थापना 'रागमाला' नामक पुस्तक में किया है इसी तरह सत्पुरुषोंने अनाकार प्रभु के आकार की कल्पना कीयी है ।
और शुभ आशय से जो पूजता है उस की मनःकामना
प्रायः सिद्ध होती है। प्र. अलिप्त परमात्मा को निंदा स्पर्श करती है या नहीं ? उ० नहीं, उन को जैसे पूजा भी कुछ स्पर्श नहीं करती वैसे
निंदा भी स्पर्श नहीं करती। प्र० तब प्रभु की कि हुई निंदा किस को लगती है ? . उ० जो निन्दक होता है उस की आत्मा को लगती है। जैसे
कोई पुरुष वज्र की दिवाल में मणि को मारता है और कोई पत्थर को फेंकता है किन्तु वे दोनों चीज क्षेपक के पास ही वापस आती है, दिवाल को कुछ भी नहीं होता । और भी सूर्य के सन्मुख रज या कपुर फेंकनेवाला