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वह साधु है और विराधक वह असाधु है । स्थापना सेवन
के समय भावना वैसी सिद्धि होती है। प्र. इन वस्तुओं का अनाकार आकारः भाव लोक में कैसे
बताया जाता है ? वह दृष्टान्त के साथ कहो। । उ० आम्नाय ( आगम अथवा मंत्र ) शास्त्र में भी यह वायु
मण्डल और यह आकाशमण्डल ऐसी आकृति होती है। विचारशास्त्र में स्वरोदय के पृथ्वी, अप, तेज, वायु और
आकाश ये पांच तत्त्व आकृति बना कर बताये जाते हैं। इन दृष्टान्तों में जैसे अनाकार वस्तु साकार बतलायी जाती है वैसे ही सिद्ध महाप्रभु की प्रतिमा भी आकार निकल कर बतलायी जाती है। जब अनाकार वस्तु की साकार आकृति बनायी जाती है तब निराकार प्रभु की प्रतिमा हो तो क्या हानि ? और भी देखो:-पूर्वकाल में संसार में वे लोग जो कि लव्धवर्ण हुए हैं उन्होंने आकृति रहित वर्गों को स्वचित्त की कल्पना को यह 'क' और 'ख' एसी आकृति देकर साकार बनाये हैं । अगर ऐसा न किया जाता और वर्ण नियत होते तो प्रत्येक की आकृति सदृश होती किन्तु वैसा नहीं है । भिन्नभिन्न ही वर्णाकृत्ति है, कोई समान नहीं है । संसार के जितने राष्ट्र है उन सब की वर्णाकृत्ति ' भिन्न भिन्न है किन्त व्यक्ति ( पठन )काल में उपदेश तो एक समान होता है और कार्य भी समान होता है । उन सब लिपियों को