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________________ ( १९३) १७ वाँ अधिकार. निगोद स्वरुप. प्र. संपूर्ण विश्व निगोद के जीवों से परिपूर्ण है । उस में कर्म, __ अन्य पुद्गल राशियाँ और धर्मास्तिकायादि किस तरह रहते हैं ? उ० जैसे गांधी की दूकान में कर्पूर की गन्ध फैली हुई रहती है उस में कस्तुरी अम्बर आदि की गन्ध, पुष्पादि की सुवास, सूर्य का आतप, धूप का धूम, वायु, शब्द, त्रसरेणु आदि मिले हुए रहते हैं । और भी जैसे विचक्षण पुरुष के हृदय में शास्त्र, पुराण, विद्या आदि होते हैं तथापि वेद, स्मृति, व्याकरण, कोष, ज्योतिष, ध्यान, तंत्र, मंत्र, कला आदि. रहते हैं। ___ और भी जैसे अरण्य में रेणु, त्रसरेणु, धूप, अमि का आतप, पुष्पों का गन्ध, पशुपक्षियों के शब्द, वाद्य के नाद, पणों की अवाज आदि का समावेश हो जाता है और अवकाश भी रहता है वैसे ही संपूर्ण लोक निगोद से परिपूर्ण होने पर भी संपूर्ण द्रव्यों का उस में समावेशः हो जाता है इतना ही नहीं किन्तु द्रव्यों से भरा होने पर भी तादृश अवकाश रहता ही है ।
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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