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अन्तर यही होता है कि ज्ञानावस्था में कुछ प्रतिक्रिया हो सकती है किन्तु दूसरे में तो नाश ही होता है। इसी तरह मन से रहित उपार्जित कर्म अनन्त काल पर्यन्त भोगने से भी समाप्त नहीं होता । निगोद के जीवों को मन नहीं है किन्तु मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, कामयोग- जो कर्मयोग के बीज होते हैं वे होते हैं ।
शान्तिः