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१६ वाँ अधिकार.
निगोद स्वरूप.
प्र. निगोद के जीवों का संक्षेप से स्वरुप कहिए ।
उ. निगोद के जीव अनन्तकाल तक निगोद में ही रहते हैं।
नारक-जीवों के दुःख से अनन्तगुना विशेष दुःख. वहाँ होता है । और स्वल्प समय में अनेकवार जन्म मृत्यु करते हैं। उन को मन भी नहीं होता, जो जीव व्यवहार राशी में आते हैं वे क्रम से विशुद्ध होते हैं.। व्यवहार राशी में से जो जीव वापिस जाता है वह पुनः निगोद के । सहश होता है।
१ एकेन्द्रिय को, द्वीन्द्रिय को, त्रीरिन्द्रिय को, चतुरिन्द्रिय को मन नहीं होता, पंचेन्द्रिय में जो संज्ञी होता है उस को मन होता है, असंही को मन नहीं होता.
-जैन सिद्धान्त.