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________________ (१९६) उ. स्वर्ग-नरकादि का किसी भी चेष्टा विशेष से बोध नहीं होता, किन्तु इस कारण से उस का नास्तित्व नहीं हो सकता । हम देख सकते हैं कि देव-देवी की उपासना करनेवाले भक्त लोक उन की भक्ति करने से अपने वांच्छित फल को प्राप्त करते हैं, किन्तु फल को देनेवाले देवदेवीयों को प्रत्यक्ष कभी नहीं देखते तो क्या उन को न देखने से वे कभी उन की सत्ता का अस्वीकार करते हैं ? इसी तरह प्राप्ति के योग्य स्वर्ग-नरकादि की सत्ता समज लेनी चाहिए। और भी लंका है " ऐसा हम और आप हमेशा स्वीकार करते हैं और उस के अस्तित्व को प्रमाणित मानते हैं, मगर कोई सवाल करे कि " लंका कहाँ है, हमें बतलाओ" तो सज्जनो जब तक वह संशय करने वाला मनुष्य लंका को नहीं जावेगा, वहाँ तक कैसे उस .. को प्रत्यक्ष हो सकता है ? तो एक चीज जो यहाँ मौजूद है ... .वह भी बिना वहाँ गये नहीं देख सकते तो हम छद्म. . स्थ विना केवलज्ञान के स्वर्ग-नरकादि को कैसे प्रत्यक्ष. . . कर सकते हैं ?
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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