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१३ वाँ अधिकार.
परोक्ष और प्रत्यक्ष ये दोनों प्रमाण स्वीकारने के योग्य हैं। प्र. कितनेक कहते हैं कि-पुण्य नहीं है, पाप नहीं है, स्वर्ग
नहीं है, नरक नहीं है, मोक्ष नहीं है, पुनर्जन्म भी नहीं है और मन से कुछ भी नहीं ग्रहण कर सकते और जिस में पांचो इन्द्रियों के विषय होते हैं ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण को छोड के अन्य किसी प्रमाणों को नहीं मानने चाहिए।
क्या यह युक्तिसंगत है ? उ. जो वस्तु दृश्य हो वही सत् और अन्य असत् ऐसी मान्यता
ठीक नहीं है। जिस में पांचों इन्द्रियों का विषय हो ऐसी वस्त कौन है उस को प्रथम विचारना चाहिए। अगर रामादि में (स्त्री आदि में) पांचों इन्द्रियों का विषय है तो सोचना चाहिए कि रात्रि में शब्द-रूप से समान किन्तु पूर्वकथित जो रामादि वस्तु नहीं है उस में क्या रामादि वस्तु का भ्रम नहीं होता ? अगर यह कहा जाय कि रात्रि में सर्व