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________________ (१०६) ...:. है वह कभी निंदापात्र नहीं होता, और वही भवसमुद्र के पार को पाता है । ' गुजराती ' में कहा भी है " निश्चय दृष्टि चित्त धरीजी पाले जे व्यवहार, पुण्यवन्त ते पामशेजी. भवसमुद्रनो पार." 'प्र. निश्चय हष्ठिवाले कुलीन मनुष्य को कहाँ तक स्व-व्य वहार की रक्षा करनी ? उ० जहाँ तक सिद्ध परमात्मा का निरावलंबन ध्यान करने के लिए मन समर्थ न हो वहां तक, और जब तक सुसाधु और कुसाधु का निश्चय करने में समर्थ, ज्ञानोदय न हो वहां तक, निश्चय दृष्टिवाहक कुलीन पुरुष को स्व-व्यवहार की रक्षा करनी चाहिए। प्र० निर्वाणधाम की मंगलमयी द्वारभूमि को प्राप्त करने के लिए क्या करना आवश्यक है ? ७० द्रव्य और भाव, ये दोनों प्रकार के धर्म का पालन करना ___ वह मंगलमयी भूमि को प्राप्त करने के लिए उत्तम वाहन के समान है। प्र. कौनसा परम धर्म है ? और वह क्या प्राप्त करवाता है ? उ. आत्मज्ञान यही परम धर्म है और वही महात्माओं को शिवधाम में ( मोक्षमंदिर में ) पहुंचानेवाला है । कहने
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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