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________________ ( ९७ ) होगी । लोक में जीव तीन तरह के होते हैं—सेवक, प्र सेवक और मध्यस्थ । जब प्रथम के दो प्रकार के जीवों की गति होती है तब मध्यस्थ जीव की भी कोई गति होनी चाहिए। और अगर मध्यस्थ की कोई नियत गति होती है तो उस गति को करनेवाला कौन है ? इस लिए यही कहना योग्य है कि जीव जैसा कर्म करता है वैसा सुखदुःख पाता है । प्र० ईश्वर खुद में से ही जीवों को प्रगट कर के ( सृजन कर के ) संसारभाव को देता है और महाप्रलय के समय फिर खुद उस का संहार करता है । क्या यह कहना सत्य है ? उ० नहीं, यह बिलकुल असंभवित है । क्यों कि अगर ऐसा माना जायेगा तो सवाल यह पैदा होता है कि क्या ईश्वरने जीवों को कोई ईष्ट स्थान में छिपा रक्खे थे जैसे हम स्टोर में किसी चीज को रक्खते हैं वैसे रख्खे थे या जीवों का नवीन सृजन होता है और फिर प्रगट करता है । प्रथम में अगर छिपे हुए प्रगट करता है तो उस को किस का डर था जो छिपाता है ? अगर उस की अचिन्त्य शक्ति कहो तो वह लोभी कहलाएगा अगर नयी रचना करता है तो क्या पुराने जीवों को स्वतंत्र करने में असमर्थ है जिससे उन को बंधन में रक्ख के विडंबना देता है ? और स्वचीज को नाश करने
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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