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वाला वह ईश्वर कैसा अविवेकी कहा जायेगा ? बालक भी स्वकृत वस्तु को अपनी ताकत के अन्तिम समय तक रक्षा करता है |
प्र० क्या यह जंगत् ईश्वर की लीला है ?
उ० नहीं, ईश्वर जगत् की लीला में नहीं पडता, और वह ईश्वर के साथ शोभा को भी नहीं देता । जिस को तप-जप और ध्यान पसंद आता है वह ईश्वर ऐसे पचड़े में क्या गिरेगा ? जिस में जीवों की हत्या होती हो वैसी लीला क्या वह पसंद करेगा ? दूसरों को निषेध करें और खुद प्रवृत्ति करें यह कभी हो सकता नहीं । और भला ! ऐसे काम करनेवाला कभी ईश्वर भी हो सकता है ? और जो ईश्वर ज्योतिर्मय है वह कैसे अपने रम्य अंशो को विमोह लगा के संसार में परिभ्रमण करावेगा ? संसारभाव को प्राप्त हो कर जो जीवत्व को दुःख के तर्फ धकेलता है वह कैसे ईश्वरांश कहाएगा | अगर यह सब ईश्वर की लीला है तो मानना ही चाहिए कि उस को दुःखमय संसार ही इष्ट है, ओर जब ऐसा है तो संसारी जीवों को उस की प्राप्ति वास्ते व्यर्थ क्यों प्रयत्न करना ?
तात्पर्य - कहने की मतलब यह है कि जो ईश्वर है वह चिन्मय और सदा एकरूप है, तथा वह ईश्वर प्रत्येक योगीश्वरों को भी उपास्य है । जीव अपने विविध प्रकार के कर्मयोग से सुगति को या दुर्गति को - सुख को या दुःख को पाता है और जब