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________________ (९०) प्र० कर्म जो मर्यादित सुख को देनेवाले हैं वह कैसे अनन्त सुख को दे सकते हैं ? उ० सिद्धात्माओं को सुख वेदनीय कर्म के उदय से प्राप्त नहीं हुआ अगर उसके क्षय को वह अनन्तसुख प्राप्त हुआ है इस लिए सिद्धात्माओं को कर्म सुख को देनेवाले नहीं है। प्र० जितेन्द्रिय योगियों को किसी भी सांसारिक सुख की अभि लाषा होती है ? उ० जितेन्द्रियों को ऐहिक सुख की कभी अभिलाषा नहीं होती क्योंकि जैसे पूर्ण पात्र में कुछ भी नहीं रह सकता वैसे सच्चिदानंदरूपी अमृत से परिपूर्ण ऐसे सिद्धात्माओं को तुच्छ सांसारिक सुखों की कभी अभिलाषा नहीं होती है। . प्र०. सिद्धात्माओं को नित्य सुख कैसे रहता है ? ' उ० जैसे प्राकृतजन को अद्भूत नृत्य दर्शन से अति सुख होता है वैसे सिद्धात्माओं को भी विश्वरूप नाटक को देखने से . .. नित्य सुख रहता है। 4. सिद्धात्माओं को कर्मेन्द्रिय, झानेन्द्रिय या शरीर का प्रभाव .' . ' होता है तो वे कैसे सुखास्वाद करते हैं, दृष्टान्त से बतलाओ। उ० कोई दर्दी ज्वरपीडित हो और जब कभी वह सो जाता है तब अगर कोई उस को उठाने का प्रयत्न करता है तो ‘समीपस्थ स्नेही कहता है-भाई उस को मत उठाओ। वह .: सुखमें है । और भी कोई योगी कि जो श्रात्मज्ञानामृत में
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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