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________________ ६ मा अधिकार. मुक्त जीवों को कर्मबन्ध नहीं होता। . प्र. पंचपरमेष्टि संज्ञावाले सिद्धात्मा, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य को जो विभूषित है ऐसे सिद्धजीव कर्मों को क्यों ग्रहण नहीं करते? अगर उन को सुख है तो शुभ कर्मों के ग्रहणसे कौन रोकता है ? उ० सिद्धात्माओं को कर्मग्रहण का प्रयोग है क्यों कि कर्मों का ग्रहण सूक्ष्म तैजस और कार्मण शरीर से होता है जिन को वहाँ अभाव होता है। प्र. सिद्धात्मा कैसे होते है ? उ० सिद्धात्मा हमेशां निष्क्रिय होते है। सिद्धात्माओं को ज्योतिः चिद् और आनंदके भरसे तृप्ति होती है और सुख-दुःख की प्राप्ति में हेतुभूत काल, स्वभावादि प्रयोजकों का अभाव होता है। प्र. कर्मसिद्धों के सुखके लिए हेतु न हो सकते हैं ? . उ० कर्मसिद्धों के सुख के हेतु नहीं हो सकते क्यों कि उन का . अस्तित्व भी नहीं है और सिद्धों का सुख अनन्त भी है।
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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