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(८६) उ० वंदरों को (कपि) पकड ने के लिए चने से भरा हुआ पात्र
(जिसका मुंह बहुत छोटा होता है ) रक्खा जाता है । बंदर चने को खाने के लिए वहाँ आते हैं और हाथ डाल के चनोंको लेनेका प्रयत्न करते हैं किन्तु पात्रका मुंह छोटा होने से तथा बंदर का हाथ चने से भरा हुआ होने से हाथ नहीं निकलता, तब बंदर शोचता है कि किसी ने मेरे हाथ को पकड लिया है और वह चिल्लाना शुरु करता है उस समय पकडनेवाले उसे पकड लेते हैं। अगर बंदर समज के भ्रमको छोड कर हाथ खाली कर के चला जाय तो. बन्धन में नहीं आता।
शुक को पकड ने के लिए किसी पेड पर एक चक्र लगाया . जाता है और चक्र की कणिका के उपर एक करेला रक्खा जाता है। वह करेला अपना भक्ष्य है ऐसा समज के-भ्रम से वहाँ आकर के बैठता है । और बैठने के साथ वह चक्र, घुमने लगता है । शुकको यद्यपि किसीने प्रकडा नहीं है मगर भ्रम से वह अपने को पकडा हुआ या किसी जाल में फँसा हुआ समजता है और उस के साथ घूमने लगता
है। इतना ही नहीं किन्तु उस को अपना इष्ट समजके चि. • पका रहता है और चिल्लाता है और उस की चिल्लाहट ... . सुनकर के पकडनेवाले पकड लेते हैं मगर शुक भ्रम-शंका
रक्खे बिना उड जाता है तो मुक्त हो जाता है और बन्धन में नहीं आता । इसी तरह आत्मा भी कर्म से बद्ध होता है अर्थात बहिरात्मभाव से क्या आचरण करने का ।