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(८५) प्राप्ति में मी हेतुभूत हो और जिसके कारण विना परिश्रम
ते ही शीघ्र आत्मज्ञान हो जाय ? उ० हाँ, आत्मा शुद्ध बुद्ध होने पर भी भ्रम से जकडी हुई है
और वह भ्रम दूर हो जाने पर मुक्तिको प्राप्त होता है वह मुक्ति का सरल मार्ग है ऐसा हर एक दर्शनवाले और योगीलोक भी मानते है। योगी भ्रम को-कर्म-मोह, अविद्या, कर्ता, माया, देव, अज्ञान इत्यादि शब्दों से पहि
चानते हैं। प्र० अभ्रम अर्थात् क्या यह उदाहरण के साथ बतलाईए। उ० अतद् वस्तु में तद्वस्तु का ग्रह स्वीकार करना यह भ्रम है
स्त्री, पुत्र, मित्र, माता, पिता, द्रव्य, शरीर आदि अनात्मीय हैं । इस भव में नहीं जा सकते ऐसा होने पर भी
आत्मीय वस्तु की तरह मानना यह भ्रम है। प्र० मिथ्यात्व किस को कहते हैं ? उ० संसार में और शरीरमें स्थित-वर्तमान सुंदर (मनोरम )
वस्तु में प्रेम रखना और दुर्वस्तु में दुष्ट मनोवृति रखना
यह मिथ्यात्व है। प्र० सम्यग्ज्ञान किस को कहते हैं ? उ० मन में से रागद्वेप को निकाल के समभाव और वीतरागदशा
. का अनुभव करना यह सम्यग्ज्ञान है । प्र० भ्रमसे किस तरह आत्मा कर्मपाशमें फसता है यह दृष्टान्त , के साथ समझाभो।