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________________ । ८२ ) प्र० तप, संयम आदि विष्णु की ही सेवा है ऐसा माना जाय . तो क्या विरोध है ? उ० प्रथम सवाल यह उपस्थित होता है कि वे किस से प्रवृत्ति में आया'। अगर विष्णुप्रमुख से कहा जाय तो विष्णु को वाणी या हाथ पैर आदि कुछ नहीं है तब वह कैसे अन्य को ज्ञात करवा सकता है। कारण यह है कि विष्णु तो निष्क्रिय हैं और निष्क्रिय को सक्रिय - कहना यह तो मूर्खता है। लोक रुढी में मान्य कामलीला आदि शृंगार साधनों में प्रवृत्त तथा सृष्टि के उत्पत्ति-लय-स्थिति के कारणरूप विष्णु-ब्रह्मा और शिव यहाँ ग्रहण करने के नहीं हैं मगर जिस का शुद्ध स्वरूप बतलाया है उस शुद्धात्म स्वरूप को ही ग्रहण करने का हैं। . विजयोदयसूरि. प्र० तप, संयम आदि प्रवृत्तियाँ किस से हुई ? उ० वे अध्यात्मयोग से हुई। उस के सिवाय वे प्रवृतियाँ नहीं हो सक्ती । अगर ऐसा कोई कहे कि विष्णु के भक्त योगियों ने कीयी तो ऐसा प्रश्न खडा होता है कि-उन को वे प्रवृत्तियाँ किसने समजाई ? तब कहना ही होगा कि वे अध्यात्मयोग से हुई। अध्यात्मयोग के प्रणेता विष्णु नही हो सकते क्यों कि वे निष्क्रिय हैं। इस लिए संक्षेप में यही लिखने का है कि आत्मज्ञान से ही अध्यात्मयोग होता है।
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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