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________________ ( ८३ ) प्र० अध्यात्मयोग किस से आर्विभाव को पाया ? उ० अध्यात्मयोग योगियों से प्रगट हुआ और योगियोंने भी आत्मज्ञान से ही अध्यात्मयांग को पहिचाना अन्य से नहीं; अर्थात् निष्क्रिय, निरिन्द्रिय, निरंजन और एक स्वरूप विष्णुप्रमुख से नहीं जाना । प्र० अध्यात्म योग किसको कहना ? उ० स्व-आत्मा से समभाव करने से-रागद्वेष के जाने से अपूर्व श्रात्मलाभ से और संपूर्ण द्रव्यों के यथास्थित दर्शन से जो ' ज्ञानबोध होता है उस को अध्यात्म योग कहते हैं। . प्र० अध्यात्म योग कैसे होता है ? उ० वह स्वत: सिद्ध है। प्र० स्वभाव से मुक्ति मानी गई है सो कैसे और इस का क्या अर्थ है ? उ० स्व अर्थात् आत्मा, उसका भाव वह स्वभाव । भत्व शब्द : 'भू' धातु पर से हुआ है जिस का अर्थ प्राप्ति है। इस लिए उस का भी अर्थ प्राप्ति करना योग्य है। और ऐसे अर्थ को स्वीकारने पर स्वभाव का अर्थ आत्म-प्राप्ति-आत्मलाभ और आत्मज्ञान से मुक्ति निश्चित है। प्र. मुक्ति मागको रोकनेवाले कौन हैं ? उ० मुक्तिमार्ग को रोकनेवाले कषाय हैं। प्र० कपाय का अर्थ क्या है ? -. --
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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