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० ब्रह्म का अर्थ भी आत्मा है । निज अर्थात् परब्रह्म ऐसी संज्ञा जिस को भावना करने से आत्मा ही ब्रह्म है ।
प्र० शिवं अर्थात् क्या ?
उ० शिव अर्थात् शिव - निर्वाण - मोक्ष प्राप्त करने से और शिव का कारण होने से आत्मा ही शिव है ।
प्र० शक्ति का क्या अर्थ है ?
शुद्ध आत्मभाव दीयी है उस की
उ० शक्ति अर्थात् स्व आत्म वीर्य - शक्ति - उपयोग में लाने से आत्मा ही शक्ति है |
तात्पर्य — इस तरह विष्णु आदि शब्दों से आत्मा ही समजना और आत्मा से आत्मज्ञान से ही मुक्ति है, अन्य किसी से मुक्ति प्राप्त नहीं होगी ऐसा विचार हमेशां हृदय में रखना चाहिए |
प्र० अगर आत्मज्ञान से मुक्ति न होती हो और केवल विष्णुप्रमुख से होती हो तो क्या विरोध है ?
उ० अगर विष्णुप्रमुख से ही मुक्ति मिलती हो तो वैष्णवादि सन्त और गृहस्थ विष्णुप्रमुख की ही पूजा और जाप करें मगर तप, संयम, निःसंगता, रागद्वेष का निवारण, पञ्चेन्द्रिय के विषयों से निवृत्ति, ध्यान और आत्मज्ञानादि क्यों करते हैं ? - यह स्पष्ट करना चाहिए ।
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