________________
( ७५ ) संपत्ति और सुख बढ़ता है और उस के सुकर्म से माता आदि का सुख भी होता है और जन्मपत्रिका में ग्रह भी अच्छे आते हैं। ___ चौथा प्रकार--पूर्वजन्म में कुतकर्म पूर्वजन्म में ही फलदायी होते हैं । अर्थात् इस भव में किया हुआ कर्म इस भव में नहीं, इस के बाद के भव में भी नहीं मगर उस के बाद के भव में आत्मा को फलदायी होता है । दृष्टान्त यह है कि-कोई इस जन्म में उग्र व्रत तपश्चर्या आदि करे मगर उस के पहले अगर देव या तिर्यंचादि भवों का आयु निर्माण कर लिया हो तो व्रत के प्रभाव से-दीर्घायुवाला कोई भोगने योग्य बडा फल-उस के बाद के भव में द्रव्यादि सामग्री का तथाप्रकार का उदय हो तब ही प्राप्त होता है।
जैसे कोई मनुष्य यह चीज कल को काम आयेगी ऐसा समज कर आज उस का उपयोग न करते हुए सम्हाल के रख लेता है और फिर योग्य समय को जैसे उस का उपयोग करता है उसी तरह कर्म की स्थिति मान लेनी चाहिए । प्र० कर्म कितने प्रकार की अवस्थावाले होते हैं ! . उ० कर्म तीन प्रकार की अवस्थावालें होते हैं। (१) भुक्त.
(२) भोग्य और (३) भुज्यमान । ये सब स्थितियाँ शुभ
अशुभ को समान होती हैं।। प्र०. भुक्त, भोग्य और भुज्यमान अर्थात् क्या ? . .. .