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सप्तम अधिकार.
मुक्तिमार्ग कभी परिपूर्ण नहीं होगा
और संसार कभी भव्यशून्य नहीं होगा ॥
प्र० मुक्तिमार्ग नदी के प्रवाह की तरह हमेशां जारी ही रहेगा और संसार कदापि भव्यशून्य नहीं होगा ये दोनों परस्पर विरुद्ध वाक्य कैसे ठीक होंगे यह उदाहरण के साथ समजाइए ।
उ० नदीओं के उद्गमस्थान से जल का प्रवाह हमेशां प्रवाहित हो कर के समुद्र में जाता है मगर उद्गमस्थान कभी जल से खाली न हुआ और जलप्रवाह स्थित भी न हुआ और समुद्र कभी पूर्ण भी न हुआ । इसी तरह हमेशां भव्यजीव संसार को छोड़ के मुक्ति को जाते है किन्तु