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________________ ( ७४ ) औषधिपान के समय नहीं जानता है कि यह हितकारी या अहितकारी है मगर जव उस का परिपाक काल आता है तब सुख या दुःख देती है उसी तरह कर्मग्रहण के समय जीव उस की शुभाशुभता को नहीं जानता किन्तु कर्मों के परिपाक के समय वे कर्म सुख या दुःख अवश्य देते हैं। प्र. कर्म कितने प्रकार से उदय में आते हैं वह दृष्टान्त के साथ वतलाओ। उ० कर्म चार प्रकार से उदय में आते हैं। प्रथम प्रकार-इधर ही किया अच्छा या बुरा कर्म इधर ही उदय में आता है । दृष्टान्त के तौर पर जैसे सिद्ध पुरुष या राजा को दी हुई स्वल्प वस्तु भी लक्ष्मी को लाती है और चौरी आदि अप्रशस्त कार्य यहाँ ही नाश के लिये होता हैं। दूसरा प्रकार---इस भव में किया कर्म अन्य भव में उदय में आता है। जैसे तपोव्रतादि प्रशस्य आचरणों से देवत्वादि मिलते हैं । और विरुद्ध आचरणों से नरकादि मिलते हैं। तीसरा प्रकार-पूर्वजन्म में कृतकर्म इस जन्म में सुख दुःख को देनेवाला होता है। जैसे किसी गृहस्थ के वहाँ जब पुत्र का जन्म होता है तब दरिद्रता बढने लगती है, माता आदि का वियोग होता है और जन्मकुण्डली में प्रह भी अच्छे नहीं आते जव अन्य किसी गृहस्थ के वहाँ पुत्रजन्म से ऐश्वर्य,
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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