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पक्षघात, अर्धांग और शीतांग आदि रोगों का परिपाक सहस्र दिन के पश्चात् शास्त्रविशारद वैद्यलोग ज्ञानबल से कहते हैं । जैसे कृत्रिम विष तत्काल नाश करनेवाला या मास, दो मास, - वर्ष या दो वर्ष के बाद नाश करनेवाला होता है उसी तरह कर्म भी अनेक तरह के और भिन्नभिन्न स्थिति के होते हैं जो - स्व स्वकाल को प्राप्त होने पर स्वयं ही स्वकर्ता जवि को तादृश फल देते हैं । जैसे वसन्त, हेमन्त, वर्षादि ऋतुयें स्वकाल को प्राप्त हो कर मनुष्यों को सुखदुःख देती हैं उसी तरह कर्म समुदाय भी स्वस्वकाल को प्राप्त हो कर के किसी की प्रेरणा के बिना आत्मा को सत्वर सुखदुःख पहुँचाती है । और भी जैसे पित्त से उत्पन्न ज्वर दश दिन, कफ से बार दिन, वात से सात दिन और त्रिदोष से पैदा हुआ ज्वर पंदरह दिन रहता है उसी तरह कृतकमों का स्थितिकाल भी भिन्नभिन्न होता है ।
और भी आत्माने जिस तरह के पूर्व आचरण किये हो उसी तरह के ग्रह भी जन्मकुण्डली में आते हैं । उन ग्रहों का 'फल जैसे महादशा, अंतर्दशा सहित स्वस्थिति के मुताबिककिसी की प्रेरणा के बिना स्वभाव से ही भोगे जाते है उस तरह अन्यकमों से अंतरित ( अन्य जो कर्म आत्माने किये हो उस का फल परिपाक काल आने पर स्वयं ही
भोगे जाते हैं । परन्तु कभी कभी जैसे स्वादिष्ट भोजन शरीर में - तत्काल ही वातादि को पैदा करता है उसी तरह उम्र कर्म भी आत्मा को तत्काल ही फल देता है । और भी जैसे कोई रोगी
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