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( ६३.) कर्यु नथी.. तेमनु कथन आ प्रमाणे छे. ज्यां सुधी *कषाय अने विषयोनु सेवन करे त्यां सुधी आ आत्मा संसार ज छे अने आत्मज्ञान थयाथी ज़्यारे कषायविषयथी-कर्मथी मुक्त थाय त्यारे ते आत्मा ज़ मोक्ष छ. ज्ञान दर्शन अने चारित्र पण आ आत्मा ज छे. आत्माथी भिन्न कंइ नथी. ज्ञानादिमय आ आत्मा ज्यां सुधी कर्मयुक्त होयछे त्यांमुधी शरीरनो आश्रय लेछे अने ज्यारे मोहनो क्षय थवा पूर्वक आत्मशक्ति-आत्मज्ञान प्रकट थवाथी आत्मामा आत्माने सम्यक् प्रकारे जाणेछे त्यारे तेने ज्ञान, दर्शन अने चारित्र उदयमा आव्यु एम आत्मज्ञानी आतो कहेछे. आत्मज्ञान विनाना अनेक कष्टाचरणोथी पण अनिवार्य एवं अज्ञानपणाथी उत्पन्न थयेलं अनंतकालमुंजे दुःख ते आत्मज्ञानयी निवारण थायछे. चिद्रूप आ आत्मा कर्मना प्रभावथी ज्यां सुधी शरीरनं अधिष्ठान करे त्यां सुधी शरीरी अने ज्यारे ध्यानरूप अग्निवडे समस्त कर्मरूप इंधनने बाळीने शुद्ध थाय त्यारे ते ज निरंजन. अत्यार सुधीना प्रबंधथी एटलं सिद्ध थयुं के सिद्धि-मुक्ति माटे आत्मज्ञान विना वीनो हेतु-मार्ग नथी. माटे ए ज मार्गमा यत्न करवो के जेथी आत्माने महोदय-(मोक्ष) मां स्थान प्राप्त थाय.
- उपर केवल राजयोगथी मोक्षलक्ष्मी मळे एवो मार्ग वताववामा आव्योछे, जे जैन आगम अने युक्तिथी सिद्धछे अने एकांत उत्सर्ग अथवा एकांत अपवाद रूप थी रहित छे. पण मुक्तिनो कोइ एवो सरळ मार्ग छे के जे सर्व मत-दर्शनने अनुसरतो अने अध्यात्मविद्यानी माप्तिमां हेतु होय अने जेवी श्रमविना शीत्र आत्मज्ञान थाय ? :
* जेनाथी कप (संसारेनो आय प्राप्ति-लाभ) याय ते क्रोध, मान, माया अने लोभ कपाय कहेवायछे.