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(६२) रागरोषनुं निवारण, पंचेंद्रियोनो विषय थकी विराम, ध्यान अने आत्मज्ञान ए आदि शुं काम करेछे ? जो एम कहेवामां आवे के तपसंयमादि एज विष्णु प्रमुखनी सेवा छे तो ते कोनाथी प्रवृत्तिमा आवी ? जो विष्णु प्रमुखथी कहेवामां आवे तो तेमने वाणी नथी अने हाथ पण नथी के जेथी बीजाने जणावी शके. जो विष्णु प्रमुखनुं ध्यान करनारा योगियोथी ए प्रवृत्ति थइ तो तेमणे कोनाथी माप्त करी-जाणी ? जो अध्यात्मयोगथी होय तो तेनो प्रणेता कोण घइ गयो ? निरंजन अने निष्क्रिय विष्णु प्रमुख तो कहेवा योग्य नथी त्यारे अध्यात्मयोग कोनाथी आविर्भाव पाम्यो-प्रकट थयो? जो आदि योगियोथी एम कहे, थाय तो तेमणे पण आत्मज्ञानथी ज अध्यात्मयोग जाण्यो, वीजायी नहि; तेमज निरिंद्रय, निष्क्रिय, निरंजन अने एकस्वरुप विष्णु प्रमुखथी पण नहि-एम कहेवू पडशे. स्वआत्मायकी -समभाव भाववाथी, रागद्वेष जवाथी, अपूर्व आत्मलामथी अने सर्व द्रव्यना यथास्थित दर्शनथी जे ज्ञान-बोध थाय ते ज अध्यास्मयोग. एरीते अध्यात्मयोग स्वतःज सिद्ध छे. आवा आत्मज्ञानथीज मनुष्योने मुक्ति थायछे. विष्णु प्रमुख बीजो कोइ मुक्तिनो हेतु नथी. माटे आत्मज्ञाननी स्पृहा-इच्छा करवा योग्य छे. स्वभावथीं मुक्ति थायछे एम जे कहेवामां आवेछे तेमां पण - एज अर्थ निवेदन करेलो छे. स्त्र जे आत्मा तेनो भाव ते स्वभाव. भाव शब्द माप्ति अर्थमां वपराता भू धातु उपरथी थयेलो छे एटले तेनो अर्थ पण प्राप्ति एवो ज करवो योग्य छे. एम करवामां आवे एटले स्वभावनो अर्थ आत्ममाप्ति-आत्मलाभ-आत्मज्ञान एवो थाय अने आत्मज्ञानथी सिद्धिलक्ष्मी-मुक्ति निश्चित छे. ए रीते सर्वे मुक्तिना इच्छुओए आत्मज्ञानधी मुक्ति इच्छवा योग्य छे. प्रकृष्ट गुणयुक्त महात्माओए मुक्तिनुं निमित्त आत्मज्ञान विना वीजें कंइ निवेदन