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( २५) सिद्धोनुं पण ब्रह्म रहेलं छे अने तेथी एवं कहेवायछे के ब्रह्ममां ब्रह्म लीन थायछे अने ज्योतिमां ज्योति मळी जायछे.
जो एम होय तो क्षेत्रतुं सांकर्य केम न थाय तथा परस्पर आलिंगित (मिलित) ब्रह्मने संकीर्णता केम न याय ?
जेम कोई विद्वान्ना हृदयमा घणा शास्त्राक्षरोनो संग्रह छतां तेनी छाती संकीर्ण (सांकडी) थती नथी तथा अक्षरोने परिपिण्डता थती नथी तेम ब्रह्मपरंपराश्रित ब्रह्म (चिद् ) वडे सर्वतः आश्लिष्ट क्षेत्र ( दिव ) संकीर्ण यतुं नथी अने ब्रह्मने सांकर्य थतुं ( संकडामण पडती) नथी. एज प्रमाणे सिद्धोथी परिपूरित सिद्धक्षेत्र संकीर्ण थतुं नशी अने सिद्धपरंपराश्रित सिदो सांकर्यबाधा रहित जयवंता वर्तछे.