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( १२ ) पृथ्वी में कीली गाड़ने पर समाहित होती है, उसी प्रकार एक एक आकाश प्रदेश में एक दो से लगाकर अनन्त परमाणु रहते हैं ।
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(४) काल का वीतना (व्यतीत) लक्षण किस दृष्टांत से ? जिस प्रकार कोई बालक जन्मा हो तत्पश्चात् बाल्यावस्था को प्राप्त हो, फिर तरूणावस्था में आवें और तत्पश्चात् वृद्धावस्था को प्राप्त हो । इन सभी अवस्थाओं में जीव तो एक समान ही रहता है परन्तु बाल, तरुण एवं वृद्धावस्था का करने वाला काल है | काल के प्रभाव से जीव पुद्गल नई नई अवस्था धारण करता है परन्तु जीव एवं पुद्गल द्रव्य का विनाश नहीं होता सिर्फ पर्याय पलटती है । इसका दृष्टांत इस प्रकार है - जिस प्रकार कोई स्वर्ण की मुद्रिका बनवाता है फिर उसी मुद्रिका की मुरकी (कर्ण भूषण) बनवाता है, उसी का विनाश करवाकर गलहार बनवाता है, इस प्रकार नई नई अवस्थाएं धारण करता है, परन्तु मूल द्रव्य स्वर्ण का विनाश नहीं होता । उसी प्रकार पुद्गल परमाणु भी द्विप्रदेश आदि से अनन्त प्रदेशी तक नये नये रूप एवं अवस्था धारण करता है, परन्तु पुद्गल का अपुद्गल नहीं होता, जिस प्रकार सोने का आकार परिवर्तन हुआ परन्तु सोना वही रहा उमी प्रकार जीव एवं पुद्गल भो वही रहते हैं वे परिवर्तित नहीं होते ।