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न खलु सर्ग : संहारमन्तरेण, न संहारो वा सर्गमन्तरेण, न सष्टिसंहारो स्थितिमन्तरेण, न स्थिति सर्गसंहारमन्तरेण । य एव हि सर्गः स एव सहारः, य एवं संहारः स. एव सर्गः, यावेव सर्ग-संहारौ सैव स्थितिः, येव स्थितिस्तावेव सर्गसंहाराविति ।
वास्तव में उत्पाद व्यय के विना नहीं होता, व्यय उत्पाद के विना नही होता, उत्पाद और व्यय ध्रौव्य के बिना नही होते तथा ध्रौव्य उत्पाद और व्यय के विना नहीं होता, क्योंकि जो उत्पाद है, वही व्यय है जो व्यय है, वही उत्पाद है, जो उत्पाद और व्यय, है वे ही धोव्य है, जो प्रीव्या है वही उत्पाद और व्यय है।
इस प्रकार प्रागम प्रमाण, तर्क और अनुभव से देखने पर प्रत्येक जड़ और चेतन वस्तु त्रयात्मक है । प्रति समय वस्तु का यह स्वरूप है, उसे किसी ने बनाया नही। किसी कारण से वह बनी या कारण विशेष ने उसे बनाया है ऐसा भूतार्य से मानना ही जनदर्शन में ईश्वरवाद का प्रवेश है। वस्तुतः प्रत्येक वस्तु ने प्रति समय स्वंय ही विवक्षित स्वभाव से स्वभावान्तर को स्वीकार किया। इस प्रकार इसी अर्थ को सूचित करने में कारण द्रव्य को स्वीकार किया गया है । वह विवक्षित कार्यरूप परिणमनेवाले द्रव्य से मिलकर कार्यरूप परिणमनेवाले द्रव्य की क्रिया नही करता वस्तुतः वह (कारण द्रव्य निमत्त कारण) स्वयं अपनी क्रिया करता है ।
विविक्षित कार्यरूप परिणमनेवाले द्रव्य की क्रिया करता है, ऐसा यदि कहा जाता है, तो वह असद्भूत व्यवहारनय से ही कहा जाता है, फिर कार्यकाल में वाह्य व्याप्तिवश प्राप्त हुऐ अन्य पदार्थ में कालप्रत्यासत्तिवश निमित्त व्यवहार तो होता है ।
काल प्रत्यासत्तिवश हो निमित्त मे कारण व्यवहार होता है
प्रागम में सम्बन्ध को विवक्षा में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से सम्बन्ध को चार प्रकार का स्वीकार किया गया है । इसी बात को स्पष्ट करते हुऐ श्री भट्टाकलंकादेव अप्टसहली पृष्ठ १११ में लिखते है।
"न हि कस्यचित् केनचित् साक्षात्परंपरया वा सम्बन्धो नास्तिताल्पास्यत्व प्रमंगात्"।
किसी का किसी के साथ साक्षात् या परमपरा से सम्बन्ध नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता, अन्यथा उसे शून्यपने का प्रसंग पाता है ।
द्रव्य प्रत्यासत्ति लक्षण सम्बन्ध - जैसे, गुण और गुणी में या पर्याय और पर्यायवान् में द्रव्यप्रत्यासत्ति लक्षण सम्बन्ध है । इससे यह व्यवहार होता है कि इस गुणी का यह गुण है और इस पर्यायवान् की यह पर्याय है यदि इसमें साक्षादतादात्म्यलक्षण संवन्ध नहीं माना जाता है तो जैसे स्वतंत्र द्रव्य और पर्याय का प्रभाव प्राप्त होता है। वैसे ही समस्त गुण और पर्यायों से रहित द्रव्य का भी प्रभाव प्राप्त होता है ।
क्षेत्र प्रत्यासत्ति लक्षण सम्बन्ध - जैसे चक्षु रूप में इस नाम का सम्बन्ध है । यदि उक्त दोनों में यह सम्बन्ध नही माना जाता है तो अयोग्य देश में स्थित रूप का चक्षु द्वारा जैसे ज्ञान नहीं होता, वैसे ही योग्य देश में स्थित रूप का भी चक्षु द्वारा ज्ञान नहीं हो सकेगा।
काल प्रत्यासंत्ति लक्षण सम्बन्ध - कारण और कार्यरूप परिणाम में कालप्रत्यासत्तिलक्षण सम्बन्ध है। यदि कारण और कार्य में यह सम्बन्ध नहीं स्वीकार किया जाता तो अनाभिमत काल में रहने वाले दो पदार्थों में जैसे कार्यकारण भाव नहीं बनता उसी प्रकार अभिमत काल में भी कारणकार्य भाव का सद्भाव सिद्ध नहीं होने से दोनों का प्रभाव हो जायगा।