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विषय सूची
मंगलाचरण
१ कोई भी बाह्य निमित्त होवें अन्य द्रव्यों का (१) सामान्य समीक्षा का समाधान १ कार्य करते ही नहीं मार्ग के भेद और उनका लक्षण
२ हमने अर्थ करने में भूल नहीं की, आगम का पूर्वपक्ष का कहना और उसका समाधान २ कथन स्पष्ट है।
४२ समीक्षा का मत और उसका सप्रमाण समाधान ३ द्वितीय भाग की समीक्षा के आधार पर, ४३ निमित्तकारण सहायक है इस अपेक्षा से वह तृतीय भाग की समीक्षा के प्रांधार पर भूतार्थ है और उसका समाधान
७ चतुर्थ भाग की समीक्षा के.प्राधार पर ४४ पूर्वपक्ष द्वारा जैनतत्व मीमांसा की मीमांसा में पंचम भाग की समीक्षाके आधार पर ४४ किये गये विधानों का उल्लेख
११ जीव भूतार्थ रूप में पुद्गलों का निमित्तकर्ता भी उनका समाधान
१४ नहीं होता पूर्वपक्ष द्वारा उपचार की कथंचित् भूतार्थता (४) शंका १, दौर ३, समीक्षा का समाधान ४५ का समर्थन और उसका समाधान २७ शंकाकार द्वारा किए गए असमीचीन अर्थ का । मतैक्य के नाम पर चार मुद्दों का समाधान २७ निराकरण प्रारोप और उसका समाधान
२८ कालप्रत्यासत्तिवश ही निमित्त में कारण का (२) शंका १, वीर १, समीक्षा का समाधान २६ व्यवहार होता है (३) शंका १, चौर २, समीक्षा का समाधान ३१ प्रेरक निमित्त भूतार्थ रूप से अन्य के कार्य के प्रथम भाग के आधार पर समाधान ३१ प्रेरक नहीं
४६ दोनों प्रकार के वाह्य निमित्तों के लक्षण ३१ अब थोड़ा कर्मशास्त्र की दृष्टि से भी इस विषय । पूर्वपक्षों द्वारा किये गये दोनों प्रकार के लक्षण पर विचार कर लिया जाय . ५१ तथा उनका निराकरण -
३१ प्रेरक कारण के निषेध का दूसरा कारण तत्वार्थ सूत्र प्र. ५ सू. ७ में स्वप्रत्यय पर्याय नियत उपादान से नियत कार्य की स्वीकृति है ५३ धर्मादिक तीन द्रव्यों की विवक्षित है २५ हमारा लिखना छलपूर्ण नहीं . ५३ सब द्रव्यों की परप्रत्यय पर्याय का नयष्टि से बाह्य निमित्त को सहकारी कहना उपचार से विचार
२६ ही संभव है जैनतत्व की मीमांसा की रचना का कारण २६ उत्तर प्रश्न के अनुरूप उपादान अनेक योग्यता वाला होता है इसका सूक्ष्म विमर्श का फल निरसन
३५ हमारे वक्तव्यों में कोई विरोध नहीं है कार्यों की अपेक्षा बाह्य निमित्तों में भेद नहीं ३६ अनेक वक्तव्यों पर की गई आपत्तिका समन्वय अर्थविपर्यास
३७ रूप एक उत्तर उपसंहार (स. पृ. १८)
३७ कथन १२ का समाधान
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