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यथा-मिट्टी के स्वयं भीतर से घट परिणाम के सन्मुख होने पर दण्ड, चक्र और पुरुष का प्रयत्न विशेष निमित्त मात्र होते हैं ।
इन उल्लेखों से यह अच्छीतरह स्पष्ट हो जाता है कि जिसे समीक्षक प्रेरक कारण कहता है, उसके बलपर मिट्टी घटपर्याय के सन्मुख नहीं होती; किन्तु जब मिट्टी घटपर्याय के सन्मुख होती है, तभी प्रायोगिक (प्रेरक) कुम्भकार आदि बाह्य पदार्थ निमित्तमात्र होते हैं और यह ठीक भी है, क्योंकि कुम्भकार प्रभृत्ति कोई भी पदार्थ अपने से भिन्न किसी भी कार्य का परमार्थ से कारयिता नहीं होता, अन्य पदार्थ के कार्य में बाह्य द्रव्य मात्र निमित्त होता है । (देखो समयसार गाथा १०७) - कथन नं. ६१ का समाधान :-समीक्षक जब यह मानता है कि अन्य द्रव्य अन्य द्रव्य के कार्य का परमार्थ से कर्ता नहीं होता, तब वह अपने इस आग्रह को क्यों नहीं छोड़ देता कि सम्यक उपादान के रहते हुए भी यदि वाह्य निमित्त न मिले तो कार्य आगे-पीछे कभी भी हो सकता है, वाह्यनिमित्त के बलपर । उसका ऐसे आग्रह को छोड़े बिना कोई चारा नहीं, क्योंकि समर्थ उपादान और उपचार से समर्थ निमित्त का योग एक काल में होता ही है।
कथन नं. ६२ का समाधान :--चाहे निमित्त निष्क्रिय या क्रियासहित द्रव्य क्यों न हो, पर के कार्य करने में स्वरूप से वह अकिंचित्कर ही है, क्योंकि प्रत्येक द्रव्य स्वयं अपना ही कार्य करता है, कोई किसी का कार्य नहीं करता । किसी कार्य का असद्भूत व्यवहार से निमित्त होना और वात है और उसका परमार्थ से कर्ता होना या सहायक होना दूसरी वान है।
कथन नं. ६३ का समाधान :--इस कथन में तत्त्वचर्चा पृ. २५ के अपने कथन का उल्लेख करते हुए समीक्षक ने जो अनेक विपरीत मान्यतायें बना रखी हैं, उनको लक्ष्य में रखकर पृ. ६६ में दिया गया हमारा उत्तर यथार्थ है, वह यहाँ पर अविकल लागू होता है। किन्तु हमें खेद है कि वह इस कथन का ऐसा विपर्यास करता है, जिसका प्रकृत में कोई प्रयोजन नहीं । इसका विशेष विचार हम छठी शंका के तीसरे दौर के उत्तर में करनेवाले हैं, इसलिये इस आधार से इसकी विशेष चर्चा करना हम यहाँ इष्ट नहीं मानते । "जिसप्रकार विवक्षित कार्य की विवक्षित बाह्य सामग्री ही नियत हेतु होती है, उसप्रकार उसकी विवक्षित उपादान सामग्री ही नियत हेतु होती है । अतएव प्रत्येक कार्य प्रत्येक समय में प्रतिनियत आभ्यंतर बाह्य सामग्री को निमित्त कर ही उत्पन्न होता है - ऐसा समझना चाहिये । स्व-पर प्रत्यय परिणमन का अभिप्राय भी यही है। इसपर से उपादान को अनेक योग्यतावाला कहकर बाह्य सामग्री के बलपर चाहे जिस कार्य की उत्पत्ति की कल्पना करना मिथ्या है।" समीक्षक को इसे हृदयंगम कर लेने की आवश्यकता है।
कथन नं. ६४ का समाधान :-समीक्षक के इस कथन में विशेष कोई वक्तव्य देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यहां भी उन्हीं बातों को दुहराया गया है।
कथन नं. ६५ का समाधान :-समीक्षक स्व-पर प्रत्यय परिणमन से विभावपर्याय और स्वभावपर्याय दोनों को ग्रहण करता है, जो युक्तियुक्त नहीं है। ऐसा लगता है कि वह अपनी भूल को समझ गया है, इसलिये वह इसकी विशेष चर्चा नहीं करना चाहता। हमने कार्योत्पत्ति में बाह्य सामग्री