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यदि वह कहे कि आत्मा ने इच्छा स्वयं नहीं की, किन्तु कर्म के उदय की प्रेरणा से हुई, तो हम कहेंगे कि कर्म तो जड़ हैं, इसलिये जव वह प्रेरणा कर ही नहीं सकता, ऐसी अवस्था में कर्म के उदय की प्रेरणा से इच्छा हुई, यह कहने की अपेक्षा यह कहना ही युक्तियुक्त प्रतीत होता है कि प्रात्मा ने स्वयं की, कर्म का.उदय उसके होने में निमित्तमात्र है।
अतः "प्रेयमाणाः" पद को असद्भूत व्यवहारंनय का कथन मानकर प्रकृत में यही समझना चाहिये कि वास्तव में क्रियावान् आत्मा पुद्गल को शब्दरूप परिणमाने की सामर्थ्य से रहित है, फिर भी उसमें उसप्रकार की सामर्थ्य का आरोप करके उसे उपचार से शब्दरूप परिणमने में प्रेर्यमारण कहा गया है, यह स्पष्ट हो जाता है । . दूसरा उदाहरण पंचास्तिकाय गाथा ८८ की समय व्याख्या का है -
- यथा हि गतिपरिणतः प्रभंजन: वैजयन्तीनां गतिपरिणामस्य हेतुकविलोक्यते, न तथा धर्मः । खलु निष्क्रियत्वात् न कदाचिदपि गतिपरिणामाममेवापद्यते।
जैसे कि गति परिणत वायु ध्वजाओं के गति परिणाम का हेतु कर्ता देखा जाता है, उसप्रकार धर्मद्रव्य नहीं, क्योंकि वह निष्क्रिय होने से गति परिणाम को कभी प्राप्त नहीं होता।
इस उदाहरण में कहा गया है कि क्रियावान् पदार्थ अन्य के कार्य में हेतुकर्ता अर्थात् प्रेरक होता है, निष्क्रिय द्रव्य नहीं; क्योंकि वह कभी भी गति परिणाम को नहीं प्राप्त होता । यतः वायु गति परिणाम करता है और उसे निमित्त कर ध्वजा भी गति परिणामस्वरूप परिणमने लगती है। सो यह क्रियावान् दोनों द्रव्यों को लक्ष्य में रखकर उदाहरण मात्र है। वायु जानकर क्रिया परिणाम रूप नहीं परिणम सकता है। इससे यह सूचित होता है कि जितने भी कार्य वर्तमान में हुई चेष्टापूर्वक होते हैं, उनमें आगम के अनुसार आत्मा ने यह कार्य पुरुपार्थपूर्वक किया ऐसा व्यवहार होता है, उन्हें ही प्रायोगिक कहा जाता है, अन्य को नहीं; क्योंकि अन्य को हेतुकर्ता कहना उपचार का उपचार मात्र है।
इष्टोपदेश में यह वचन उपलब्ध होता है -
नाज्ञो विज्ञत्वमायाति विज्ञो नाज्ञत्वमच्छति ।
निमित्तमात्रमन्यस्तु गतेधर्मास्तिकायवत् ।। ३५ ।। इसकी टीका में पं० आशाधरजी ने लिखा है -
भद्र ! अज्ञस्तत्त्वज्ञानोत्पत्ययोग्योऽभव्यादिविज्ञत्वे तत्त्वज्ञत्वं धर्माचार्याध पदेशसहस्रणापि न गच्छति ।
अर्थ :-हे भद्र ! तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति के अयोग्य अभव्य आदि जीव को धर्माचार्यादि के हजारों उपदेश मिलने पर भी वह विज्ञपने को नहीं प्राप्त हो सकता।