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समीक्षा
ते जगमें धरि आतमध्यान अखंडित ज्ञान सुधारस चाखें ।
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सम्यग्दृष्टि के लिये दोनूही नय अभूतार्थ हैं। वह किसी नयकी पक्ष ग्रहण नहीं करता वह केवल नयोंके द्वारा वस्तुस्वरूप समझ लेता है । अत: नयकी पक्ष करना मिध्यात्व है । जो हिय अंध विकल मिथ्यात घर मृपा सकल विकलप उपजावत । गहि एकान्तपक्ष आत्मको करता मानि अधोसुख धावत । त्यां जिनमति द्रव्यचारित्रकर करनी करि करतार कहावत । ति मुक्ति तथापि मूहमति विन समकित भवपार न पावत ॥ कोई मुठ विकल एकान्त पक्ष है है आता अकरतार पूरण परम है। तिनसीं जु कोउ कहै जीव करता है तांसे फेर कहै कर्मको करता करम है । ऐसे मिध्यामगन मिथ्याति ब्रह्मघाती जीव जिनके हिये अनादि मोहको भरम है । तिनके मिथ्यात्व दूर करवेकू कहै गुरु स्याद्वाद परमाण आतम धरम है।
अर्थात् एकान्तपक्षको ग्रहण करनेवाले जीवको श्राचार्यांन निध्याती ब्रह्मघाती बतलाया है इसलिये आचार्य कहते हैं कि व्यवहारनिश्चय दोनों नयों से वस्तुस्वरूप समझनेवाला जीव सम्यग्दृष्टि है।
नि अभेद अंग उदे गुणकी तरंग उद्यमकी रीति लिये उता शकति है। रूप प्रमाण स्वभाव कालकी मी हाल परिणाम चक्रगति हैं। याहि भांति आतमदर वके अनेक अंग एकमा एकको न मार्ने यो कुमति है। एक
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