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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ जैन तत्त्वमीमांसा की किन्तु निमित्त की अपेक्षा घटका कर्ता कुम्भकार है क्योंकि वह घट रूप क्रिया निष्पत्ति के प्रति कुम्भकार होता है । कुम्भ उस का कर्म हैं चक्रादि उसका करण है जल धारण रूप उसका प्रयोजन सम्प्रदान, है कुम्भकार का अन्य व्यापार से अलग होकर इसमें लगना अपादान है पृथ्वी आदि उसका अधिकरण आधार है इस प्रकार घटका कर्ता कुम्भकार का होना संभव है क्योंकि घटोत्पत्ति स्वयमेव केवल मृतिकामे नहीं होती कारण कुम्भकारादि होने से ही मृतिका से घटोत्पत्ति होती है । 'अव कुम्भका घटरूप परिणमन करने वाली मृतिका को खानसे लाकर चलता है फिर उसमें पानी देता हैं तत्पश्चात उस मृतिका को रोधते हैं अर्थात् उसमें चिकनाई लोचादि घटरूप होनेका वल पैदा करते है । उस मृतिका में पड़ी पडी में अपने आप घटरूप होनेकी शक्ति उत्पन्न नहीं होती अतः कुम्भकार ही उस मृर्तिका में घटरूप परिणमन करनेका बलदान पेदा करते हैं इसका नाम है वलदान निमित्त | फिर वह कुम्भकार उस मृतिका को घटरूप परिणमन कराने में प्रेरणा करता है इसलिये वह कुम्भकार प्रेरक निमित्त कारण भी है तथा चाक चीवर आदि सहाय निमित्त कारण हैं उनके बिना भी घटोत्पत्ति नहीं होती अत: कार्योत्पत्ति केवल उपादानसे ही होना आप जो सोनगढ के सिद्धान्तानुसार मानते हैं वह सर्वथा श्रागमविरुद्ध मिथ्या है विना निमित्त के उपादान केवल पंगूवत पडा रहता है इसलिये आचार्योंने कार्योत्पत्ति में निमित्त नैमित्तिक दोनोंका सम्बन्ध बतलाया है अर्थात नैमित्तिक के साथ वलदान प्रेरक, सहायक आदि निमित्त हो तो नैमित्तिकका कार्य निष्पन्न हो सकता है अन्यथा नही इस हेतुसे निमित्त में कारणमें कार्य का उपचार करके आचार्योंने कारणको भी कर्ता कहा है यह सर्वथा असत्य नहीं है। नय अपेक्षा सव सत्य है । एकान्त बाद सब मिथ्या है 1 For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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