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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा ३४७ निमित्त को भी हम कार्य का वर्ता कह सकते हैं जैसा पूर्वाचार्यों के अनेक स्थलों पर कहा है। इस वातको आप भी स्वीकार करते है । 46 इस प्रकार हम देखते है कि शास्त्रों में निमित्त कारण का निमित्त आलम्बन साधन हेतु प्रत्यय, कारण प्रेरक उत्पादक कर्ता हेतु कर्ता, और निमित कर्ता इत्यादि विविध रूप से कथन किया गया है " पृष्ठ २१० जैनतत्त्वमीमांसा जव पूर्वाचार्योने शास्त्रों में निमित्त कारणों को भी कर्ता, घोषित किया है तव भगवानकी स्तुती स्तोत्रादिक निमित्त कारणों से हमारे अभीष्टकी सिद्धि होती है तो हम यदि भगवान को हमारे श्रभीष्टकी सिद्धि करने वाले कह दें तो इसमें कौन सामिध्यात्व है और कौन सी आगम विरुद्ध वात है ? क्योंकि हम भगवानको उपचारसे कर्ता मानते हैं न कि अन्य मतावलम्बियों की तरह साक्षात् कर्ता मानते हैं जो मिथ्यात्वका प्रसंग 1 श्रावे | अतः भक्ति मार्गको मिध्यात्व बताकर मिथ्यात्व की पुष्टि करना है यह आगम विरुद्ध बात है और मिथ्यात्व वर्धक है कारक अपेक्षा भी घटका कर्ता कुम्भकार को कहा जाता है यह भी लोकव्यवहार प्रसिद्ध है यह भी एक नय अपेक्षा कथंचित सत्य है। लोक व्यवहार भी सत्य के आधार पर ही चलता है । अन्यथा लोक व्यवहार की भी शृखंला छिन्न भिन्न हुये विना नहीं रहती । स्व उपादान की अपेक्षा देखा जाय तो घटका कर्ता मृत्तिका है मृतिका से ही घटोत्पत्ति होती है। मृत्तिका का ही यह कर्म है. मृत्तिका ही इसका करण है मृत्तिका ही इस का सम्प्रदान है मृत्तिका ही इसका अपादान है और मृतिका ही इसका अधिकरण है For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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